रक्त की ज्वाला को कायदे से धधकाना होगा,
रक्त की ज्वाला को कायदे से धधकाना होगा,
मन के भीतर से अंधकार को अब जाना होगा,
ना जाने किस दरख़्त में मकाँ है परिंदे का,
बस ढूढ़कर रौशनी को बाहर लाना होगा,
बदहवासी अब कहीं इस तरह छाई हुई है,
सोते हुए जमीर को अब जगाना होगा,
बेहतर है अगर मिल जाये कहीं किनारा तो,
बेशक टूटी है नाव पर उस तरफ जाना होगा,
जो युद्ध घमासान अब होने की तैयारी में है,
अब कमर कसकर मैदान ऐ जंग जाना होगा,
किसी की बाजुओं की गुस्ताखियां बढ़ रही है,
किसी परिंदे को ये राज उनका बताना होगा,
आईने को देर तक निहारने से क्या मिला,
इस परछाईं को भी चलते चलते रुक जाना होगा ।

कवि नरेन प्रधान